तत्त्वों के वर्गीकरण के प्रारंभिक प्रयास
1: धातु और अधातु में वर्गीकरण (Classification into metals and nonmetals)
सर्वप्रथम 18वीं शताब्दी में लभ्वाजे (Lavoisier) ने तत्त्वों का वर्गीकरण धातु और अधातु में किया। उसके अनुसार, कुछ गुण सभी धातुओं में समान रूप से पाए जाते हैं। उदाहरण के लिए, धातुएँ चमकीली, आघातवर्धनीय (malleable) तथा तन्य (ductile) होती हैं। ये ऊष्मा और विद्युत की सुचालक होती हैं तथा इनके ऑक्साइड भास्मिक (basic) होते हैं। इसी प्रकार अधातुओं में भी कुछ गुण समान रूप से पाए जाते हैं। उदाहरण के लिए, अधातुएँ देखने में उदास (dull) होती हैं तथा इनमें आघातवर्धनीयता और तन्यता नहीं होती। ये ऊष्मा और विद्युत की कुचालक होती हैं तथा इनके ऑक्साइड अम्लीय (acidic) होते हैं।
दोष-वर्गीकरण की यह प्रणाली निम्नलिखित कारणों से सफल नहीं हो सकी।
(i) ऐसा वर्गीकरण इतना साधारण है कि इसके आधार पर तत्त्वों के गुणों का समुचित अध्ययन नहीं किया जा सकता है।
(ii) यह बहुत-सी धातुओं के बीच की भिन्नता की व्याख्या नहीं कर पाता है। इसी प्रकार, बहुत-सी अधातुओं के बीच की भिन्नता को भी यह समझाने में सक्षम नहीं हो सका। उदाहरण के लिए, सोडियम (Na) और प्लैटिनम (Pt) दोनों ही धातु हैं, किंतु, सोडियम अतिक्रियाशील होता है, जबकि प्लैटिनम एक अक्रिय धातु है। इसी प्रकार, ग्रेफाइट और सल्फर दोनों अधातु हैं। किंतु, इन दोनों के गुणों में काफी अंतर है। .
2. संयोजकता के आधार पर वर्गीकरण (Classification based on valency)
इसके अनुसार, समान संयोजकता वाले तत्त्वों को एक-साथ रखा गया; यथा, एकबंधक, द्विबंधक, त्रिबंधक आदि तत्त्वों को अलग वर्गों में विभाजित किया गया। किंतु, इस प्रकार के वर्गीकरण में निम्नलिखित दोष हैं
(i) बहुत-से तत्त्वों की संयोजकताएँ परिवर्तनशील होती हैं। उदाहरण के लिए, कॉपर (Cu) की संयोजकताएँ 1 और 2, आइरन (Fe) की संयोजकताएँ 2 और 3, टिन (Sn) की संयोजकताएँ 2 और 4 होती हैं। अतः, इन तत्त्वों का वर्ग में स्थान अनिश्चित हो जाता है।
(ii) एक ही संयोजकता वाले तत्त्वों के गुण एक-दूसरे से भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, सोडियम (Na) और क्लोरीन (Cl) दोनों की संयोजकता 1 होती है किंतु, इन दोनों के गुण एक-दूसरे से नितांत भिन्न सोडियम एक प्रबल विद्युतधनात्मक धातु है, . क्लोरीन एक प्रबल विद्युतऋणात्मक अधातु है।